पैदल कर दिये जा सकते हैं प्रदीप सिंह?
अशोक कुमार
10 फरवरी 2024
Araria : इस धरातली हकीकत को कोई झुठला नहीं सकता कि राजद (RJD) की सीमांचल, विशेष कर अररिया (Araria) और किशनगंज (Kishanganj) जिलों की राजनीति मुख्य रूप से तसलीम उद्दीन (Taslim Uddin) और उनके परिवारजनों पर केन्द्रित रही है. इस कारण स्थानीय स्तर पर दूसरा कोई मजबूत नेतृत्व उभर नहीं पाया है. यूं कहें कि उभरने नहीं दिया गया है. इसका असर यह हुआ कि राजद सीमांचल की मुस्लिम सियासत में करीब-करीब नेतृत्वविहीन हो गया है. हालांकि, पार्टी में इस समुदाय के अनेक नेता हैं. पर, नेतृत्व के वे गुण उनमें नहीं हैं, जो तसलीम उद्दीन में थे. विरासत के विवाद के आशंकित खतरा और जीत दिलाऊ विकल्प के अभाव में राजद अररिया की सीट महागठबंधन (Mahagathbandhan) के दूसरे घटक के हिस्से में जाने दे, तो वह अचरज की कोई बात नहीं होगी.
दो संसदीय क्षेत्रों पर दावा
नीतीश कुमार की चौथी पलटी से राज्य की राजनीति (Politics) के बदल गये हालात में वह दल और कोई नहीं कांग्रेस (Congress) हो सकती है. वैसे, कांग्रेस ने सीमांचल (Simanchal) के दो संसदीय क्षेत्रों पर पहले से दावा ठोंक रखा है. किशनगंज (Kishanganj) और कटिहार (Katihar) पर. कटिहार के बदले उसे अररिया दिया जा सकता है. इस रूप में यदि उसकी संभावना बनती है, तो मुख्यतः तीन नामों पर गौर फरमाया जा सकता है. अररिया जिला कांग्रेस के अध्यक्ष पूर्व मंत्री जाकिर हुसैन, अररिया के विधायक आबिदुर रहमान और कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान के नाम पर. जाकिर अनवर और शकील अहमद खान पूर्व में इस क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं.
चुनावी रणनीतिकार के रूप में है पहचान
वैसे, अररिया की सीट कांग्रेस की प्राथमिकता सूची में नहीं है. सरफराज आलम (Sarfaraj Alam) और शाहनवाज आलम (Shahnawaj Alam) में समन्वय स्थापित नहीं होने की स्थिति में राजद अररिया जिला परिषद की पूर्व अध्यक्ष शगुफ्ता अजीम (Shagufta Azim) को अवसर उपलब्ध करा सकता है. शगुफ्ता अजीम के पति आफताब उर्फ पप्पू अजीम (Pappu Azim) फिलवक्त अररिया जिला परिषद के अध्यक्ष हैं. क्षेत्र के लोगों की बातों पर भरोसा करें, तो अररिया जिले में इस दम्पति की पहचान बड़े चुनावी रणनीतिकार के रूप में स्थापित है. इसका अंदाज इससे भी लगाया जा सकता है कि बिहार में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के समय से ही अररिया जिला परिषद (Zila Parishad) के अध्यक्ष पद पर यही दंपत्ति काबिज हैं. दोनों को विधानसभा का चुनाव लड़ने का अनुभव भी है. हालांकि, दोनों अभी जदयू में हैं. आमंत्रण मिलने पर जुड़ाव राजद से हो जा सकता है, ऐसा उनके निकट के लोग भी मानते हैं.
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युवा वर्ग को मिलेगा तवज्जो
राजग में यह सीट भाजपा के हिस्से में रहेगी. पर, उम्मीदवारी वर्तमान सांसद प्रदीप सिंह (Pradeep Singh) को ही मिलेगी, ऐसा दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. इस पार्टी में भी और कई दावेदार हैं. नये दावेदारों के उभरने का आधार वह चर्चा है जिसमें कहा जा रहा है कि अधिकाधिक सफलता हासिल करने के लिए भाजपा (BJP) नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर पर ‘सठियाये चुनावी चेहरों’ को वानप्रस्थ आश्रम में डाल युवा वर्ग को तवज्जो देने की रणनीति पर मंथन कर रहा है. ऐसी किसी रणनीति पर अमल हुआ तब 2024 के संसदीय चुनाव (Parliamentary Election) में नये चेहरों को अवसर उपलब्ध कराया जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) संसद में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहते हैं. ऐसा इस समझ के तहत भी किया जाने वाला है कि एक ही नेता को लगातार उम्मीदवार बनाये जाने से उसके साथी कार्यकर्ता ताउम्र चुनावी राजनीति से बाहर रह जाते हैं.
क्षेत्र में है मजबूत पकड़
भाजपा के सूत्रों के अनुसार विकल्प के तौर पर पार्टी नेतृत्व की नजर युवा नेता रंजीत कुमार यादव (Ranjit Kumar Yadav) पर भी है. इस युवा नेता के करीब रहने वालों के मुताबिक उन्हें चुनाव की तैयारी करने को कहा गया है. 2015 में जोकीहाट (Jokihat) विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी रहे युवा नेता रंजीत कुमार यादव की क्षेत्र में मजबूत पकड़ तो है ही, चुनाव के लिए आवश्यक साम दाम दण्ड भेद की कला में भी वह निपुण माने जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में तकरीबन पांच लाख यादव मतदाता हैं. जीत-हार में इनकी अहम भूमिका होती है. विश्लेषकों का मानना है कि रंजीत कुमार यादव को उम्मीदवार बनाये जाने पर यादव मतों की गोलबंदी भाजपा के पक्ष में हो जा सकती है.
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