तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

पूर्णिया संसदीय क्षेत्र : खड़े हो गये कान आमलोगों के भी

शेयर करें:

अशोक कुमार
11 जनवरी 2024

Purnia : हाल फिलहाल तक पूर्णिया की राजनीति सुप्त-सुस्त पड़ी हुई थी. संसदीय चुनाव (Parliamentary Elections) की चौक-चौराहों पर चर्चा की बात छोड़िये, इसकी कहीं कोई सुगबुगाहट तक नजर नहीं आती थी. पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने अचानक यहां अपने बिखरे-खोये जनाधार को नये सिरे से जोड़ने-सहेजने का आक्रामक अभियान शुरू किया, तो स्थानीय राजनीतिज्ञों के ही नहीं, आमलोगों के भी कान खड़े हो गये. चौक-चौराहों पर अतीत की उन बातों की चर्चा होने लगी, जिसने लंबे समय तक पूर्णिया में सिहरन पसार रखी थीं. विश्लेषकों का मानना है कि 2024 के संसदीय चुनाव में पप्पू यादव (Pappu Yadav) महागठबंधन के उम्मीदवार होते हैं या खुद की पार्टी जाप के, उक्त चर्चाएं उनके खिलाफ मतदाताओं की गोलबंदी का आधार बन जा सकती हैं.

पसंद नहीं करेंगे लोग
ऐसा इसलिए कि पूर्णिया संसदीय क्षेत्र का अमन पसंद तबका सुकून की सांस में खलल शायद ही पसंद करेगा. वैसे, यहां की बहुत बड़ी आबादी भू-माफिया की खतरनाक गतिविधियों और प्रशासनिक क्षेत्र की अराजकताओं से त्रस्त है. इससे त्राण पाने की उनमें छटपटाहट है. आश्चर्यजनक ढंग से इस तबके की उम्मीद पप्पू यादव से बंधती दिख रही है. चुनाव में इसका लाभ उन्हें मिल जाये तो वह हैरान करने वाली कोई बात नहीं होगी. उधर, पूर्णिया से चुनाव लड़ने की उनकी घोषणा से महागठबंधन को अधिक परेशानी हो रही है. इस रूप में कि जाने-अनजाने पप्पू यादव उसके गले की हड्डी बनते दिख रहे हैं.

दबाव की राजनीति
हालांकि, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि पप्पू यादव की यह दबाव की राजनीति है. मधेपुरा (Madhepura) से महागठबंधन की उम्मीदवारी पाने के लिए वह पूर्णिया पर तल्ख तेवर में दावेदारी जता रहे हैं, सक्रियता बढ़ा रहे हैं. अपनी सभाओं में भीड़ जुटवा रहे हैं. बहरहाल, पप्पू यादव का क्या होता है क्या नहीं, यह भविष्य की बात है. उनके इस अभियान से पूर्णिया में पसरा राजनीतिक सन्नाटा (Political Silence) टूट गया है. चुनाव लड़ने को इच्छुक नेता सक्रिय हो उठे हैं.


ये भी पढें :
भरोसेमंद नहीं रह गये अब अपने गांधीजी!
यह आशंका भी दे रही अविश्वास को विस्तार
बस, अपनों की महत्वाकांक्षा से परेशान हैं वह
आसान नहीं होगा उन्हें हाशिये पर डालना


हैं कई अगर-मगर
वर्तमान में जो परिदृश्य उभर रहे हैं उसमें महागठबंधन में कई अगर-मगर हैं. इसके बरक्स राजग में सीट बंटवारे और उम्मीदवार चयन को लेकर कोई झमेला नहीं है. राजग (NDA) में यह सीट भाजपा के पास रहेगी, यह लगभग तय है. इसलिए भी कि इसके सहयोगी दलों में से किसी का भी यहां जीत पाने लायक जनाधार नहीं है. सक्षम-समर्थ उम्मीदवार भी नहीं है. भाजपा (BJP) में स्थानीय और बाहरी दावेदार तो हैं, परन्तु एक-दो को छोड़ अन्य की यहां उतनी लोकप्रियता नहीं है. वैसे, उनके दावे का अपना-अपना तर्क व आधार है जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता है.

मौका मिला तब…
भाजपा के जिन नेताओं की संभावना बनती दिख रही है उनमें विधान पार्षद डा. दिलीप जायसवाल पूर्णिया के विधायक विजय खेमका, कसबा के पूर्व विधायक प्रदीप दास प्रमुख हैं. डा. दिलीप जायसवाल की सांसद बनने की बहुत पुरानी चाहत है. किशनगंज (Kishanganj) में उन्हें अवसर मिला तो समीकरण अनुकूल नहीं रहने के कारण चूक गये. पूर्णिया के हालात कुछ भिन्न हैं. मौका मिला, तो उसे जीत में बदल दे सकते हैं. विधायक विजय खेमका भी अवसर को कामयाबी में ढालने में सक्षम-समर्थ नजर आते हैं. पूर्व विधायक प्रदीप दास की दावेदारी का आधार समझ से परे है.

दावा पल्लवी गुप्ता का
इन दावेदारों के बीच भाजपा की ‘नारी शक्ति बंदन’ नीति के तहत उम्मीदवार उतारने को प्राथमिकता मिलने की संभावना बड़ा आकार लेती नजर आ रही है. ऐसा होता है, तो पूर्णिया नगर निगम की कर्त्तव्यनिष्ठ लोकप्रिय उपमहापौर पल्लवी गुप्ता को अवसर मिल जा सकता है. इसका एक आधार यह भी है कि उन्हें उम्मीदवारी (Candidacy) मिलने से भाजपा के निःस्वार्थ समर्थक वैश्य समाज को भी संतुष्टि मिल जायेगी. इस संतुष्टि का लाभ सिर्फ पूर्णिया में ही नहीं, दूसरे संसदीय क्षेत्रों में भी मिल सकता है. जातीय राजनीति में पैठ रखने वालों की मानें, तो पूर्णिया संसदीय क्षेत्र में सबसे अधिक संख्या वैश्य मतदाताओं की है, चार लाख के आसपास. वैश्य समाज के दूसरे किसी को भी उम्मीदवार (Candidate) बनाने से भाजपा को ऐसा लाभ मिल सकता है.

#Tapmanlive

अपनी राय दें